मंगलवार, 14 जून 2011

लोकतंत्र या भ्रष्टतंत्र

आज भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पिछले कई दिनों से बड़े-बड़े समाजसेवी, बड़े-बड़े नेता और न जाने कितने स्वयंसेवी आवाज उठा रहे है, धरना प्रदर्शन कर रहे है एवं अनशन करके थक चुके है, लेकिन आवाम की आवाम आवाम तक ही सिमट कर रह गई. सरकार का रवैया ज्यो का त्यों बना रहा. भ्रष्टाचार अपना जड़ फैलाता जा रहा है और हम विवश जनता सिर्फ देखने के सिवा कुछ भी करने में असमर्थ है. क्या यही लोकतंत्र है? जहाँ जनता की आवाज जनता तक ही सिमट कर रह जाती है. इस दुःखदाई मुद्दे का जिम्मेदार आखिर कौन है जनता या हमारी भ्रष्ट सरकार? तो मै कहूँगा इस पुरे प्रकरण का जिम्मेदार खुद हमारी जनता है. जी हाँ अब वक़्त आ गया है की हम ऐसे भ्रष्टतंत्र को जड़ से उखाड़कर फ़ेंक दें और फिर से एक सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करने का संकल्प लें जिसके लिए जरुरी है की पहले हम जिम्मेदार एवं जागरूक होकर एक सच्चे नागरिक का परिचय दें.
जय हिंद
डॉ. रणवीर कुमार सिंह

हिन्दू या मुस्लिम के

हिन्दू या मुस्लिम के अहसास को मत छेड़िये
अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें से कोई आर्य, कोई हूण, कोई शक तो कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं, तो घर जुम्मन का क्यों जले ?
...ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार, औरगंजेब या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सभी, इंसान की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त मेरे, मजहबी नग्मात को मत छेड़िये.....;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
Akhilesh Pathak

रविवार, 12 जून 2011

रामदेव की रामलीला ख़त्म

बाबा रामदेव ने  देश में अपना नाम योगगुरु योग साधक के रूप में बखूबी कमाया और इसमें किसी भी ब्यक्ति या किसी राजनैतिक पार्टी को कोई परेशानी नहीं थीं ! लेकिन अचानक से बाबा रामदेव को इस देश और इसकी जनता की चिंता सताने लगी और वो कूद पड़े देश से भ्रटाचार मिटाने के लिए जो की अपने आप में एक बड़ा ही निक काम था लेकिन ऐसा क्या हुआ की अचानक से उन पर या अन्न शन्न कर्ताओं पर रात के २बजे पुलिसिया कहर टूट पड़ता हे ? क्या बाबा रामदेव का अन्न शन्न देश की सतासीन पार्टी को अन्ना के अन्न शन्न की तरह मजबूत नहीं लगा या इसके पीछे बाबा की दोगली निति ही उनके लिए और उनके अन्न शन्न के लिए खतरा बन गयी ! दोगली निति इसलिए की जब बाबा ने सरकार के साथ समझोता कर लिया की वो अन्न शन्न तोड़ देंगें और बदले में सरकार उनको उनकी मांगों के मुताबिक सरकार मान गयी, तो क्या कारन था जो  बाबा अन्न शन्न जारी रखना चाहतें थे कहीं ये तो नहीं था की देश भर से हजारों की संख्या में लोगों का रामदेव की इस भूख हड़ताल में आना रामदेव ने अपनी मान और मर्यादा का मुदा बना लिया था की कहीं जनता अपने आपको ठगा महसूस न करे की हम लोगों को बुलाकर खुद अन्दर खाने बात कर स्वहित पूरा होने पर अन्न शन्न ख़त्म कर दिया , पर ऐसा भी होता तो जब पुलीस वहां पहुंची तो बाबा के चहरे से हवाइयां उड़तीं तो पुरे देश ने साफ़ देखीं हैं कारन जो कुछ भी रहा हो इस घटना से जहाँ सरकार का नुकसान हुआ तो लोगों में ये बात भी सामने आगयी की हर कोई महात्मा गांधी और अन्ना नहीं बन सकता? अच्छा हुआ की राम देव ने अन्न शन्न तोड़ दिया नहीं तो उनको शायद इससे भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती ! मुझे लेकिन आज के युवा की सोच पर बड़ा ही तरस आता है हम लोग आज भी गुलामी की जिंदगी से बहार नहीं लिकल पायें हैं बाबा ने चाहे इस मुहीम को जेसे भी chalya हो क्या आज जो कुछ भी sarakaar कर rahi हे sahi है क्या कोई इस देश में अपने हक़ के लिए लड़ना गुनाह है ? क्या हम सब लोगों को एक बार फिर से एक होने की जरुरत नहीं है अगर हे तो इसके ऐसे बाबा रामदेव जेसे ही कोई न झुकने वाली मुहीम ही चलानी परेगी नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब एक बार फिर हम लोग इन भ्रष्ट राजनेता और अधिकारीयों के गुलाम अपने ही देश में अपनों के द्वारा बना दिए जायेंगे !