मंगलवार, 16 नवंबर 2010

पहल अ माइलस्टोन का ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश

 
"पहल अ माइलस्टोन" - हिन्दी मासिक पत्रिका

आप सोच रहे होंगे कि पत्रिकाओं के समुद्र में एक और पत्रिका आपके सम्मुख आ रही है। आपका ऐसा सोचना ग़लत भी नहीं, क्योंकि आए दिन कोई नई पत्रिका लेकर आपके सामने आ जाता है, और आपसे कहता है कि हम नई विचारधारा के साथ आए हैं, हममे कुछ ऐसा है जो आपको चकाचौंध कर देगा। और न जाने कितनी अच्छी बातों से आपका सरोकार कराया जाता है, जो आगे चलकर केवल बातें ही रह जाती हैं। एक मशहूर गीतकार के एक गीत के चंद बोल "कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब, वादे हैं वादों का क्या" के अस्तित्व को  साकार करते इन बातों और वादों का दौर दोबारा आप तक नहीं पहुंचता। कई पत्रिकाएं व्यापार में लिप्त होकर अपना कर्तव्य भूल जाती हैं, तो कई रेवेन्यू जनरेट न कर पाने के कारण रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़पेपर के दफ्तर की किसी फ़ाइल में पंजीकृत मात्र रह जाती हैं।
हमें भी आपसे कुछ ऐसे ही वादे करने चाहिए, लेकिन हम कुछ बोलने के बजाय कुछ करने में विश्वास रखते हैं। कहने के लिए बातों और वादों की हमारे पास भी कमी नहीं, हम भी यह बढ़ चढ़ कर कहना चाहते हैं कि हम क्रांति की नई ज्योत जलाएंगे, युवाओं को पहल करने का मौका देंगे, युवाओं को देश का भविष्य बनाएंगे। लेकिन हम ऐसा कोई वादा नहीं कर रहे, क्योंकि हमें पता है आज का युवा आंकड़ों पर विश्वास रखता है, और हम युवाओं के बीच आंकड़ों की इस ललक को जीवित रखने का उद्देश्य रखते हैं। हम आज के युवा हैं, हम आज के युवा की आवाज़ हैं, हम युवा के साथ हैं, युवाओं की विचारधारा से प्रेरित हैं।
"पहल- अ माइलस्टोन" के आगमन के साथ कुछ विशेष तथ्य जुड़े हैं। आज हमारे देश की राजनीति में कुछ युवा नेता अपनी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं, या कह सकते हैं कि अब युवाओं को राजनीति में अपना भविष्य दिखने लगा है, और वे इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह हमारे देश की वृद्ध होती राजनीति को नव जीवन मिलने जैसा है। बुजुर्ग नेताओं के कंधे पर सवार होकर राजनीति के लिए पथ बदलना उतना आसान नहीं था जितना युवा नेताओं के साहसी और निर्भय कंधों पर सवार होकर हो सकता है. युवाओं की इस पहल से प्रेरित होकर हमने अपनी पत्रिका का नाम "पहल"  रखने के बारे में विचार किया। परंतु हम आज के युवा की आवाज़ बनने की लालसा रखते हैं इसलिए हमें यह नाम पर्याप्त नहीं लग रहा था। फ़िर हमारा ध्यान आज के प्रचलित ट्रेंड के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए, एक बेस लाइन बनाने पर गया। और इस तरह "पहल" को "पहल - अ माइलस्टोन" के रूप में एक नया और अर्थपूर्ण नाम मिला।
"अ माइलस्टोन", इसलिए क्योंकि प्रत्येक पहल एक मील का पत्थर बन जाती है। अर्थात पहल कभी व्यर्थ नहीं जाती। इतिहास इस वक्तव्य का साक्षी रहा है,  सन 1857 में, मंगल पांडे ने जिस क्रांति की पहल की उसी क्रांति के परिणाम स्वरूप आज हम आजाद देश की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, लेकिन सभी के बारे में कहना उचित नहीं होगा।
बहरहाल, इतिहास अपनी जगह है, और भविष्य की अपनी राह है। हम आने वाले भविष्य के लिए काम करने के उत्सुक है। इसी उत्सुकत के कारण हम यह पत्रिका लेकर आपके सामने आए हैं। हम यह नहीं कहते कि कोई पहल करने के लिए आप इस पत्रिका को पढ़िए, हम तो यह चाहते हैं कि कोई पहल करने के बाद आप हमें बताएं, जिसे हम अपनी पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित कर सकें।
हम अपनी ओर से एक पहल करने का प्रयास कर रहे हैं, और आपसे इस पहल का हिस्सा बनने का निवेदन।

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