होली के पावन पर्व पर पुरे देशवासियों को हमारी पूरी टीम की तरफ से शुभकामनायें
रविवार, 20 मार्च 2011
शुक्रवार, 11 मार्च 2011
क्या अब दिल्ली के लोगों का दिल अब पत्थर नहीं हो गया है ?
ये विषय चुनने में मुझे बहुत ही आसानी हुई क्योंकि हमारी कहावतो में कहा जाता हे की दिल्ली दिलवालों की इसमें दिल तो पत्थर हो चूका हे , भाइयों ! आज में इसमें अपने कुच्छ अनुभव शेयर करने जा रहा हूँ की दिल का दिल आखिर क्यों पत्थर होता जा रहा हे ! बात आज से पाच साल पहले की हे जब मेने दिल्ली की सर जमीं पर मेरा पहला कदम परा ! यहाँ हर इंसान एक उम्मीद लेकर आता हे की वो यहाँ पर अपना हर वो सपना पूरा करेगा और मैं भी इसी इरादे से दिल्ली पंहुचा ! शुरू में तो मुझे सड़क क्रोस करना भी नहीं आता था पर कहतें हे न की आपकी जरुरत आपको हर वो रास्ता इखतियार करने पर मजबूर कर देता हे जो आप कभी सपने में भी सोचने से डरतें हों ! खैर मेरे साथ तो मुश्किल केवल सड़क की ही थी ! जो की आगे चल कर मेने पार कर ही ली ! लेकिन क्या सभी इसी तरह से अपनी मुश्किलों से पर पा पातें हे ,मेरे अनुभव से शायद नहीं सभी नहीं , हाँ कुच्छ हो सकतें हैं . लेकिन क्या उनको भी ये सब अपनी काबिलियत के उपर ही सब कुछ हासिल हो पाया ? जी, नहीं उन लोगों ने भी अपने सपने दिल्ली में सच करने के लिए वो सब झेला हे जो मुबई में हमारे बिहारी व् उत्तरभारतीय लोगों ने झेला हे , ऐसा इस लिय कह रहा हूँ कियोंकि कहीं न कहीं इन सब से मुझे भी दो चार होना पर रहा है. मैं पेशे से एक पत्तरकार हूँ और एक पत्रिका का में प्रधान सम्पाक भी हूँ जिसको मेने अपनी महनत और लगन के खून पसीने में सींच कर पुरे एक वर्ष अभी अभी पुरे किये हैं! इस बिच में मेरे कई महानुभाओं से बात मुलाकात हुई जिनको देखकर बहुत दुःख हुआ की ये लोग तो अपने दिल को कभी का पत्थर कर चुके हैं ! ये तो देखने मात्र में ही इंसान हैं , इंसानियत तो ये लोग कभी की बेच खा चुके हैं आज दिल्ली में रहने वाला हर शक्श केवल पैसा और रुत्वे की ही भाषा समझतें हैं ,दूसरी कोई भी भाषा इनके समझ से परे हे ! आखिर ये सब किस लिए भाई? क्या इसी लिए हम लोग इस कायनात में आये हैं? खैर ये सब तो बहुत हुआ बहुत कुछ हे बताने के लिए लेकिन बेचारा दिल किस कदर पत्थर बना दिया हम इंसानों ने ? मेने अपनी पहली जॉब एक पत्रिका के माध्यम से ही प्रारंभ की, मेरी पहली जॉब का एक महिना तो अच्छा गुजरा लेकिन मात्र एक महीने के उपरांत ही मुझे दिल्ली के लोगों में आगे बढ़ने का जूनून कहिये या पागलपन दिख गया, कोई भी कीमत उसके लिए वो तेयार हैं , अरे भाई व् बहन जी जरा अपनी कीमत जो आप देने जा रहें है उसका मुल्यांक तो कीजिये , लेकिन नहीं मूल्याङ्कन करने के लिए समय किसके पास हैं ? यारी दोस्ती तो दूर दूर तक इसमें दिखाई नहीं देते पर रिशते नाते तक दाव पर लगाने के लिए तेयार बैठे हैं लोग क्या येही कल्पना लेकर लोग दिली आतें होगें मेरा तो कहना हे शयद ही कोई इस सोच के साथ लोग दिली आतें हों ? तो अब अगर कोई दिल्ली में आने की सोचता हो तो पहले से ही ये सोच कर आयें की दिल्ली दिलवालों की अब नहीं रही, दिल को अलग रखकर कृपया उसमे पत्थर पहले से ही फिट करके आंये तो बहतर है भाई ताकि बाद में न रोने लगो ! धन्यवाद
आगे जल्द ही रूबरू होंगे अगले लेख मैं ....................................
गुरुवार, 3 मार्च 2011
" LINGUISTIC SHACKLES"-SERIOUS MATTER OF SHAME FOR ALL INDIANS!!!!
Today I have choose this topic just after realize ma limitations..I was also a student Once upon a time..There were days when I use to write Hindi and speak very typical words of Hindi fluently. Awesome were those days when I love to write my mother tongue..When I used to feel proud on reading ma mother tongue-HINDI. It was 1 of the best subject of mine. But as I went out from school days..Entered in Plus 1..totally ANGREJON KI DUNIYA..Had choosen PCM..No place for Hindi…Was happy also as got chance to broaden ma language skills too..But the actual loss I dint realize that time..But today I feel it badly…That’s Mine Linguistic Shackles..I Lost sumwhere ma mother tongue after joining totally English medium subjects..How much Regret I feel this time..i cant put that here even!!!Coz the vast knowledge of Hindi I gained in ma school time with interest..I was loosing that actually in dreams of English subjects..But today I dnt have that same fluent and much knowledge of ma own mother tongue..thats not only bou me..but itz story of all new generation of today like me.
Hindi, our mother tongue and our national language, is dying a slow death. It is losing its importance in fast-changing modern India. It is getting limited to speaking and verbal communication. Today, people prefer reading English newspapers, watching news in English and reading more of English literature than Hindi.
Hindi can be made more popular and given its due importance, but the initiative has to be taken by us. We, perhaps, have forgotten that India is the land that has produced great Hindi novelists and poets like Munshi Premchand, Mahadevi Verma, Harivansh Rai Bachchan, and many more, but today’s generation has forgotten these names and is deviating towards Western authors like Stephanie Meyer, PG Wodehouse, Eric Segal, etc.
Students should be encouraged in schools to read Hindi literature. Hindi should be made a compulsory subject up to class XII. Students can be provided with Hindi newspapers about once a week. To make Hindi popular, novels read by the youth – such as those by Chetan Bhagat – can be translated in Hindi to make the language more popular.
Nowadays, speaking English is considered as a status symbol. Everybody tries to speak English even if they do not know how to, and feel ashamed of speaking Hindi even if they excel in it. People speaking Hindi are considered to be backward. A lot can be done to popularise Hindi. At the school level, steps should be taken to promote the language through debates and plays, doha-chaupaies, muhavre and lokoktiyan competitions so children can know their proper usage and develop their Hindi writing skills.
It should be made compulsory for children to speak the national language in at least one more period, other than the one pertaining to Hindi. While teaching moral values, stories from Indian mythology can be narrated in Hindi. This will improve their language skills as well as enrich their knowledge of our golden past. We must try and converse in Hindi with our foreign tourists, so they know that we take pride in our national language.
It is not just the Hindi language which is going out of usage but the same is true for Indian music, perorming arts, attire, and life style in general. Our people would rather relax and enjoy western music than Hindi ghazals, dance western style than Bharatnatyam, call their parents Mom and Dad. Now where do begin the reverse process? Very soon we will not be reading and writing in Hindi. Sad but true From depth of mine heart atleast. Who says we are leading..I believe we are really going to bring Slavery time soon..This is starting actually..Feel pride on your Mother tongue. Even I want to improve ma Hindi knowledge Not just because of self profit.. but its about Soul Satisfaction. Jai Hind Jai Bharat!!!
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