ये विषय चुनने में मुझे बहुत ही आसानी हुई क्योंकि हमारी कहावतो में कहा जाता हे की दिल्ली दिलवालों की इसमें दिल तो पत्थर हो चूका हे , भाइयों ! आज में इसमें अपने कुच्छ अनुभव शेयर करने जा रहा हूँ की दिल का दिल आखिर क्यों पत्थर होता जा रहा हे ! बात आज से पाच साल पहले की हे जब मेने दिल्ली की सर जमीं पर मेरा पहला कदम परा ! यहाँ हर इंसान एक उम्मीद लेकर आता हे की वो यहाँ पर अपना हर वो सपना पूरा करेगा और मैं भी इसी इरादे से दिल्ली पंहुचा ! शुरू में तो मुझे सड़क क्रोस करना भी नहीं आता था पर कहतें हे न की आपकी जरुरत आपको हर वो रास्ता इखतियार करने पर मजबूर कर देता हे जो आप कभी सपने में भी सोचने से डरतें हों ! खैर मेरे साथ तो मुश्किल केवल सड़क की ही थी ! जो की आगे चल कर मेने पार कर ही ली ! लेकिन क्या सभी इसी तरह से अपनी मुश्किलों से पर पा पातें हे ,मेरे अनुभव से शायद नहीं सभी नहीं , हाँ कुच्छ हो सकतें हैं . लेकिन क्या उनको भी ये सब अपनी काबिलियत के उपर ही सब कुछ हासिल हो पाया ? जी, नहीं उन लोगों ने भी अपने सपने दिल्ली में सच करने के लिए वो सब झेला हे जो मुबई में हमारे बिहारी व् उत्तरभारतीय लोगों ने झेला हे , ऐसा इस लिय कह रहा हूँ कियोंकि कहीं न कहीं इन सब से मुझे भी दो चार होना पर रहा है. मैं पेशे से एक पत्तरकार हूँ और एक पत्रिका का में प्रधान सम्पाक भी हूँ जिसको मेने अपनी महनत और लगन के खून पसीने में सींच कर पुरे एक वर्ष अभी अभी पुरे किये हैं! इस बिच में मेरे कई महानुभाओं से बात मुलाकात हुई जिनको देखकर बहुत दुःख हुआ की ये लोग तो अपने दिल को कभी का पत्थर कर चुके हैं ! ये तो देखने मात्र में ही इंसान हैं , इंसानियत तो ये लोग कभी की बेच खा चुके हैं आज दिल्ली में रहने वाला हर शक्श केवल पैसा और रुत्वे की ही भाषा समझतें हैं ,दूसरी कोई भी भाषा इनके समझ से परे हे ! आखिर ये सब किस लिए भाई? क्या इसी लिए हम लोग इस कायनात में आये हैं? खैर ये सब तो बहुत हुआ बहुत कुछ हे बताने के लिए लेकिन बेचारा दिल किस कदर पत्थर बना दिया हम इंसानों ने ? मेने अपनी पहली जॉब एक पत्रिका के माध्यम से ही प्रारंभ की, मेरी पहली जॉब का एक महिना तो अच्छा गुजरा लेकिन मात्र एक महीने के उपरांत ही मुझे दिल्ली के लोगों में आगे बढ़ने का जूनून कहिये या पागलपन दिख गया, कोई भी कीमत उसके लिए वो तेयार हैं , अरे भाई व् बहन जी जरा अपनी कीमत जो आप देने जा रहें है उसका मुल्यांक तो कीजिये , लेकिन नहीं मूल्याङ्कन करने के लिए समय किसके पास हैं ? यारी दोस्ती तो दूर दूर तक इसमें दिखाई नहीं देते पर रिशते नाते तक दाव पर लगाने के लिए तेयार बैठे हैं लोग क्या येही कल्पना लेकर लोग दिली आतें होगें मेरा तो कहना हे शयद ही कोई इस सोच के साथ लोग दिली आतें हों ? तो अब अगर कोई दिल्ली में आने की सोचता हो तो पहले से ही ये सोच कर आयें की दिल्ली दिलवालों की अब नहीं रही, दिल को अलग रखकर कृपया उसमे पत्थर पहले से ही फिट करके आंये तो बहतर है भाई ताकि बाद में न रोने लगो ! धन्यवाद
आगे जल्द ही रूबरू होंगे अगले लेख मैं ....................................
Yes, I have heard that crime is on increase in Delhi. I own a house there, dunno why , i feel like spending few years there.
जवाब देंहटाएंdivya ji i think this is not a safe place for living ............. thanx for ur notice on our blog .
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