बिहार में आए ऐतिहासिक जनादेश ने साबित कर दिया है कि अरसे तक हिंसा,अराजकता और परिवारवाद की चपेट में जकड़ा बिहार अब करवट ले रहा है। सकारात्मक सोच और रचनात्मक वातावरण का निर्माण करते हुए आम लोगों में विकास की भूख जगी है। नतीजा यह है कि नीतीश भाजपा गठबंधन के साथ दोबारा सत्ता में लौटे। कांग्रेस, बसपा, लोजपा और वामपंथी दलों की बात तो छोडि़ए, बिहार की बड़ी राजनीतिक ताकत रहे लालू प्रसाद यादव अपनी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी समेत पूरे कुनबे को डूबा बैठे। बिहार में नीतीश कुमार का कुशल राजनीतिक नेतृत्व ने बिहार को विकास की नई राह पर ले आया है जो एक सबक है उन लोगों के लिए जिन्होंने बिहार के वजूद को अबतक अंधेरे में रखा है। बिहार में नीतीश की जीत राजनीतिक स्थिरता के लिए भी मेंडेट है, जिससे विकास की गति आगामी पांच साल तक अवरुद्ध नहीं हो सकती है। कांग्रेस को सफलता नहीं मिली, इससे जाहिर होता है कि राहुल गांधी का जादू बिहार में नहीं चला। नीतीश कुमार की जीत वह आंधी और बाढ़ है, जिसने बिहार की ऊबड़-खाबड़ राजनीतिक जमीन को समतल कर दिया है। इतना ही नहीं इसने बिहार की राजनीति पटल को बदल कर रख दिया है। बिहार में बीते पांच साल नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की सहमति से वजूद में रही जेडीयू और बीजेपी गठंधन सरकार ने जरूर इस परिपक्वता को जमीनी धरातल देने में कामयाबी हासिल की है। इस चुनाव में मतदाताओं ने यह भी उद्घोषणा की है कि मतदाता की समझ अब व्यक्तिवादी महत्वाकांक्षा और जातिवादी राजनीति से ऊपर पहुंच गई है। लालू प्रसाद और रामविलास पासवान को बिहार में आईना दिखाते हुए मतदाताओं ने तय कर दिया है कि लोकतंत्र अब अतिवादियों, नौकरशाहों और सामंती प्रवृत्ति के तानाशाहों की पनाहगाह नहीं रहा। नीतीश बिहार में नरेंद्र मोदी की विकासवादी और परिवारवाद से मुक्त छवि के आभामंडल के साथ उभरे हैं। जिस तरह से बीते 10-12सालों में नरेंद्र मोदी का परिवार व कुटुंब के प्रति कोई आग्रह नहीं दिखा, वही स्थिति बिहार में नीतीश की है। नीतीश का आज भी गांव में कच्चा घर है, लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि विकासधारा नीतीश के गांव तक नहीं पहुंची। नीतीश ने गांवों में सड़क, पाठशाला, अस्पताल, पशु चिकित्सालय और आंगनवाड़ी केंद्रों को तो सुदृढ़ किया ही, सुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम किए। नीतीश जहां सहज, सरल और आम आदमी के प्रति आसान पहुंच के लिए सजग रहे, वहीं लालू-पासवान पंचसितारा संस्कृति के अनुयायी तो रहे ही, जातीय-ग्रस्तता से भी ऊपर नहीं उठ पाए। लिहाजा लोगों ने जीवन शैलियों में फर्क किया, राजनीतिक उत्तरदायित्वों का अहसास किया और विकास के लिए नीतीश को वोट दिया। जहां सोशल इंजीनियरिंग की शुरुआत करते हुए लालू ने यादव-मुसलमान, पिछड़ों और दलितों के गठजोड़ से बिहार में 15 साल सरकार चलाई, वहीं उत्तर प्रदेश में मायावती ने ब्राह्मण, हरिजन और मुसलमानों के जातीय समीकरण के बूते सत्ता हथियाई। नीतीश ने दलितों में महादलित, मुसलमानों में पसमाना मुसलमान, पिछड़ों में अति पिछड़े और मध्य वर्ग को अपने राजनीतिक कौशल से अपने हित में धु्रवीकृत किया। नीतीश ने यादवी दबंगी से मुक्ति के इस रसायन से कुछ ऐसा महारसायन गढ़ा कि महिला मतदाताओं में भी विकास की भूख जगा दी। नतीजतन नीतीश के गठबंधन को महिलाओं के वोट पुरुषों की तुलना में चार फीसदी ज्यादा मिले। यह स्थिति मजबूत कानून व्यवस्था के चलते संभव हुई। बहरहाल, हर वर्ग के मतदाताओं में विकास,रोटी और रोजगार की भूख जगाने में नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग एक कारगर हिस्सा बनकर उभरी है। जिस निचले तबके में अंदरूनी चल रही लोक लहर ने नीतीश को दोबारा बिहार की सत्ता पर आसीन किया है, उस लोक लहर को जगाने और उसे आवाज देने का काम लालू ने ही किया था। लेकिन इसी बुलंद हुई जुबान से लोगों ने लालू से जब विकास मांगा तो वे बाधा बनकर पेश आए। दबे-कुचलों के विकास की आवाज को लालू ने तवज्जो नहीं दी। लालू बिहार में समस्याओं के हल ढूंढ़ने के प्रति संघर्ष करने की बजाय लोकसभा में सांसदों के वेतन बढ़ाने, भ्रष्टाचार को संरक्षण देने और जातीयता को बढ़ावा देने के लिए जरूर अपनी विलक्षण शैली में आवाज बुलंद करते देखे गए। इन सब संकीर्ण कारणों के चलते ही लालू को बिहार में सर्वसमाजों से राजनीतिक ताकत देने के लिए जो जमात मिली थी, उसे भी लालू ने केवल जातीय वजूद के परिप्रेक्ष्य में देखना शुरू कर दिया था। जिसका नतीजा यह रहा कि लालू जहां लोकसभा में महज चार सांसदों की उपस्थिति के साथ हैं, वहीं बिहार में बमुश्किल दो दर्जन विधायकों की जमात में सिमटकर रह गए। कांग्रेस ने भी इस चुनाव में लालू से पल्ला झाड़कर उन्हें ठेंगा दिखा दिया है। नीतीश नैतिकता के तकाजे के साथ भी पेश आए। उन्होंने समय पूर्व राज्यपाल को इस्तीफा तो दिया ही, बिहार विधानसभा में कैबिनेट की बैठक आहूत कर वर्तमान विधानसभा भी 27 नवबंर से पहले भंग कर दी। जिससे जिसकी भी नई सरकार बने उसे अड़चन का सामना न करना पड़े। यह नैतिकता वर्तमान राजनीति के चरित्र में दुष्कार होती जा रही है। राजनीतिक दलों और नेताओं को इस पहल से सबक सीखने की जरूरत है। बहरहाल, देशहित और स्वच्छ राजनीति के पैरोकार के रूप में नीतीश का जीतना इसलिए भी जरूरी था कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को दुरूस्त करने और नागरिकों को सड़क, पानी व बिजली मुहैया कराने के भी कोई मायने होते हैं? यदि नीतीश को विजयश्री नहीं मिलती तो देश राजनीति में अपराधीकरण से निजात पाने और कानून व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण की दिशा में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित नहीं होता। तय है आगे भी देश में बिहार का अनुसरण होगा और बिहारियों का नाम पूरे देश में सम्मान के साथ लिया जाएगा। बिहार को जिसकी जरूरत थी वह मिल गया बस अब तो एक ही नारा है बिहार देश की पटल पर एक शसक्त और सुदृठ राज्य का दर्जा दिलाना जिससे बिहारवासियों को रोजगार मिल सके। उसे किसी राज्य में नौकरी के लिए नही जाना पड़े। बिहारी मांईडेड से ऊपर उठकर लोगों को अब खुले आसमां में हवा लेने की जरूरत है क्योंकि बिहार विकास के रास्ते पर दौड़ लगाने जा रही है जिसे नीतीश के 2015 का लक्ष्य में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का सपना पूरा हो जाएगा।
1. नीतीश कुमार- गृह, निगरानी, निर्वाचन, सामान्य प्रशासन, मंत्रिमंडल सचिवालय व ऐसे सभी विभाग जो किसी को आवंटित नहीं
2. सुशील कुमार मोदी- वित्ता,वाणिज्यकर, पर्यावरण एवं वन
3. विजय कुमार चौधरी- जल संसाधन
4. विजेंद्र प्रसाद यादव- ऊर्जा, उत्पाद एवं मद्य निषेध, निबंधन व संसदीय कार्य
5. नंदकिशोर यादव- पथ निर्माण
6. नरेंद्र सिंह- कृषि
7. वृषिण पटेल- परिवहन व सूचना एवं जनसंपर्क
8. रमई राम- राजस्व एवं भूमि सुधार
9.चंद्रमोहन राय- लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण
10. अश्विनी कुमार चौबे- स्वास्थ्य
11. हरि साह- पंचायती राज, पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण
12. भीम सिंह-ग्रामीण कार्य
13. रेणु कुमारी- उद्योग एवं आपदा प्रबंधन
14. जीतन राम मांझी- अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण
15. दामोदर राउत- भवन निर्माण
16. डा. प्रेम कुमार- नगर विकास एवं आवास
17. नरेंद्र नारायण यादव- विधि-योजना एवं विकास
18. प्रशांत कुमार शाही- मानव संसाधन विकास
19. शाहिद अली खान- अल्पसंख्यक कल्याण एवं सूचना प्रौद्योगिकी
20.श्याम रजक- खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण
21. परवीन अमानुल्लाह-समाज कल्याण
22. नीतीश मिश्रा- ग्रामीण विकास
23. अवधेश प्रसाद कुशवाहा- गन्ना व लघु जल संसाधन
24. गौतम सिंह- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
25. जनार्दन सिंह सिग्रीवाल- श्रम संसाधन
26. गिरिराज सिंह- पशु एवं मत्स्य संसाधन
27.सत्यदेव नारायण आर्य- खान एवं भूतत्व
28. रामाधार सिंह- सहकारिता
29. प्रो. सुखदा पांडेय- कला संस्कृति एवं युवा
30. सुनील कुमार उर्फ पिंटू-पर्यटन.